वांछित मन्त्र चुनें

सने॑मि स॒ख्यं स्व॑प॒स्यमा॑नः सू॒नुर्दा॑धार॒ शव॑सा सु॒दंसाः॑। आ॒मासु॑ चिद्दधिषे प॒क्वम॒न्तः पयः॑ कृ॒ष्णासु॒ रुश॒द्रोहि॑णीषु ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sanemi sakhyaṁ svapasyamānaḥ sūnur dādhāra śavasā sudaṁsāḥ | āmāsu cid dadhiṣe pakvam antaḥ payaḥ kṛṣṇāsu ruśad rohiṇīṣu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सने॑मि। स॒ख्यम्। सु॒ऽअ॒प॒स्यमा॑नः। सू॒नुः। दा॒धा॒र॒। शव॑सा। सु॒ऽदंसाः॑। आ॒मासु॑। चि॒त्। द॒धि॒षे॒। प॒क्वम्। अ॒न्तरिति॑। पयः॑। कृ॒ष्णासु॑। रुश॑त्। रोहि॑णीषु ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:62» मन्त्र:9 | अष्टक:1» अध्याय:5» वर्ग:2» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:11» मन्त्र:9


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे हों, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (स्वपस्यमानः) उत्तम कर्मों को करते हुए के समान (सुदंसाः) उत्तम कर्म्मयुक्त (रुशत्) शुभ गुणों की प्राप्ति करता हुआ तू जैसे (सूनुः) सत्पुत्र अपने माता-पिता का पोषण करते हुए के समान रात्रि-दिन (सनेमि) प्राचीन (सख्यम्) मित्रपन के कालावयवों को (दाधार) धारण करता और (रोहिणीषु) उत्पन्नशील (कृष्णासु) सब प्रकार से पकी हुई (चित्) और (आमासु) कच्ची औषधियों के (अन्तः) मध्य में (पक्वम्) पक्व (पयः) रस को धारण करता है, वैसे (शवसा) बल के साथ गृहाश्रम को (दधिषे) धारण कर ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों को जैसे ये दिन-रात कच्चे-पक्के रसों से उत्पन्न करने और उत्पन्न हुए पदार्थों की वृद्धि वा नाश करनेवाले सबों के मित्र के समान वर्त्तमान है, वैसे सब मनुष्यों के साथ वर्त्तना योग्य है ॥ ९ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ते कीदृशा इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

यः स्वपस्यमानः सुदंसा रुशत्त्वं सूनुमिवाहोरात्रं सनेमि सख्यं दाधार स रोहिणीषु कृष्णासु चिदप्यामास्वन्तः पक्वं पयो धरति, तथैव शवसा दधिषे स सुखमाप्नुयात् ॥ ९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सनेमि) पुराणम्। सनेमिरिति पुराणनामसु पठितम्। (निघं०३.२७) (सख्यम्) मित्रत्वम् (स्वपस्यमानः) शोभनानि चापांसि कर्माणि च स्वपांसि तान्याचरतीव सः (सूनुः) पुत्रो मातापितराविव (दाधार) धरति (शवसा) बलेन (सुदंसाः) शोभनानि दंसानि कर्माणि यस्य सः। (आमासु) अपक्वास्वोषधीषु (चित्) अपि (दधिषे) धरसि (पक्वम्) पच्यमानम् (अन्तः) मध्ये (पयः) रसम् (कृष्णासु) परिपक्वासु विलिखितासु (रुशत्) सुन्दरं रूपं धरन् (रोहिणीषु) रोहणशीलासु ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वद्भिर्यथाऽहोरात्रः पक्वापक्वरसोत्पादक उत्पन्नद्रव्यवृद्धिक्षयकरः सर्वेषां मित्रवद्वर्त्तते तथा सर्वैर्मनुष्यैः सह वर्त्तितव्यम् ॥ ९ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे हे दिवस व रात्र पक्व व अपक्व रसांना उत्पन्न करतात. उत्पन्न झालेल्या पदार्थांची वृद्धी व नाश करणारे असतात व सर्वांच्या मित्राप्रमाणे असतात. तसे विद्वानांनी सर्व माणसांबरोबर वागावे. ॥ ९ ॥